बुधवार, 16 नवंबर 2022

मन रे तू सच्ची बात बता / तू मुझ में है या मैं तुझ में हूँ ? स्वरचित कवि...




 मन रे तू सच्ची बात बता 

                        तू मुझ में है या मैं तुझ में हूँ ? 

   मालिक बनकर के बैठा है 

                        सुनता मेरी तू एक नहीं । 

    मैं आज में जीना चाहती हूँ 

                        तू यादों में उलझाता है 

    मेरे किए धरे पर आखिर 

                        क्यों मिट्टी फैलाता है ? 

    क्यों तू आखिर बिदक-बिदककर 

                        उसी दौर में जाकै बैठा है 

    जहाँ कच्चे धागे से बँधा एक भाई 

                        बहनों को संबल देता है 

    जो बिन बोले ही बहुत-सी बातें 

                        आँखों से कह जाता था 

    मुझसे छोटा होकर भी वो तब 

                        जाने क्यों बड़ा हो जाता था ? 

    छोटी हो या बड़ी बात हो 

                        सबमें शामिल मुझे किया 

    ये कच्चा धागा टूट चुका है 

                    कहे बिना क्यों चला गया ? 

    मन रे तू अब वापस आ जा 

                       मैंने सब स्वीकारा है 

    उसकी यादों के ही सहारे 

                    हर राखी को सँवारा है 

    मन के साधे सब सधे 

                    लेकिन तू सधता ही नहीं 

    मन रे तू सच्ची बात बता 

                        तू मुझ में है या मैं तुझ में हूँ ? 

   मालिक बनकर के बैठा है 

                        सुनता मेरी तू एक नहीं । 


सुशीला दहिया