सुगबुगाहट
भावों की नन्हे हृदय में भी होती है ।
भावों का ज्वार किशोर हृदय में भी ठाठें
मारता है ।
हर फूल की पंखुड़ी पर चमकती ओस को चुना है
हमने
अनगढ शब्दों में भी सुंदर अभिव्यक्ति होती है ॥
विद्यालय पत्रिका का लिंक :
https://sushiladahiyakvs.blogspot.com/2023/10/blog-post_18.html
हर आँख दुनिया को नए अंदाज़ से देखती है । अगर वह
आँख नई पीढी की हो तो भावों की ताजगी और नएपन का अहसास करा देती है । बँधे-बँधाए
पाठ्यक्रम से हटकर भी बच्चा सोचता है।अपने साथियों के साथ विचारों को बाँटता है ।
जब भी हम बच्चों से मिलकर गोष्ठी करते तो उनके सहज और निश्छल भावों को सुनकर मन
में ताजगी का अनुभव होता । बच्चे अपने विचारों को लिखना कम पसंद करते हैं क्योंकि
लेखन में बोलने जैसी सहजता खो जाती है ।
जैसे निराला ने कविता को नियमों के
बंधन से निकालते हुए छंदमुक्त किया और भावों के सहज प्रवाह को प्रधानता दी क्यों न
उसी तरह हम भी बच्चों को अपने भाव सहजता से लिखने की स्वतंत्रता दें । फिर एक बार
जब लेखन में प्रवाह आ जाता है तो व्याकरणिक शुद्धता भी समय के साथ आ ही जाती है ।
फिर मैं सोचती क्यों न इन विचारों को साहित्यिक
रूप देते हुए एक पत्रिका निकाली जाए । इस विचार रुपी बीज को पौधे में परिणत करने
के लिए एक कार्यशाला का आयोजन किया और बच्चों को अपने भाव कहानी,कविता और संस्मरण के रूप में लिखने को कहा। जो
उन्होंने लिखा उन्हें बिना माँजे, बिना तराशे अनगढ
स्वरुप में ही संकलित कर पत्रिका का निर्माण किया जा रहा है। उम्मीद है आप इन
बच्चों के मासूम भावों के पीछे छिपे हुए लेखक को पहचान पाएँगे।
सुशीला
देवी
(सम्पादक - ई-पत्रिका -)
स्नातकोत्तर
शिक्षक हिंदी
केंद्रीय
विद्यालय नाहरा
पत्रिका का लिंक नीचे दिया गया है -----