बुधवार, 18 अक्टूबर 2023

हिंदी पखवाड़ा पत्रिका के.वि.नाहरा



         सुगबुगाहट भावों की नन्हे हृदय में भी होती है ।

         भावों का ज्वार किशोर हृदय में भी ठाठें मारता है ।

         हर फूल की पंखुड़ी पर चमकती ओस को चुना है हमने

         अनगढ शब्दों में भी सुंदर अभिव्यक्ति होती है ॥

   विद्यालय पत्रिका का लिंक :

  https://sushiladahiyakvs.blogspot.com/2023/10/blog-post_18.html

 

 हर आँख दुनिया को नए अंदाज़ से देखती है । अगर वह आँख नई पीढी की हो तो भावों की ताजगी और नएपन का अहसास करा देती है । बँधे-बँधाए पाठ्यक्रम से हटकर भी बच्चा सोचता है।अपने साथियों के साथ विचारों को बाँटता है । जब भी हम बच्चों से मिलकर गोष्ठी करते तो उनके सहज और निश्छल भावों को सुनकर मन में ताजगी का अनुभव होता । बच्चे अपने विचारों को लिखना कम पसंद करते हैं क्योंकि लेखन में बोलने जैसी सहजता खो जाती है ।

जैसे निराला ने कविता को नियमों के बंधन से निकालते हुए छंदमुक्त किया और भावों के सहज प्रवाह को प्रधानता दी क्यों न उसी तरह हम भी बच्चों को अपने भाव सहजता से लिखने की स्वतंत्रता दें । फिर एक बार जब लेखन में प्रवाह आ जाता है तो व्याकरणिक शुद्धता भी समय के साथ आ ही जाती है ।

 फिर मैं सोचती क्यों न इन विचारों को साहित्यिक रूप देते हुए एक पत्रिका निकाली जाए । इस विचार रुपी बीज को पौधे में परिणत करने के लिए एक कार्यशाला का आयोजन किया और बच्चों को अपने भाव कहानी,कविता और संस्मरण के रूप में लिखने को कहा। जो उन्होंने लिखा उन्हें बिना माँजे, बिना तराशे अनगढ स्वरुप में ही संकलित कर पत्रिका का निर्माण किया जा रहा है। उम्मीद है आप इन बच्चों के मासूम भावों के पीछे छिपे हुए लेखक को पहचान पाएँगे।

   

                    सुशीला देवी

(सम्पादक - ई-पत्रिका -)

स्नातकोत्तर शिक्षक हिंदी

केंद्रीय विद्यालय नाहरा 

पत्रिका का लिंक नीचे दिया गया है -----               

                           https://online.fliphtml5.com/gqfhs/nndi/

शनिवार, 14 अक्टूबर 2023

मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता

 

       मन का संबल मिले तो हर राह आसान है । 

        अच्छा साहित्य ही मन को बनाता ऊर्जावान है 



    ये मात्र शब्द नहीं हैं । किसी के भी पथ में दीप जलाकर उसका पथ आलोकित किया जा सकता है । तनाव आज कहाँ नहीं है ? छोटे से छोटे  बच्चे को आज पढाई का तनाव है । पड़ोसी का बच्चा आगे निकल रहा है कहीं मेरा बच्चा पीछे न रह जाए ये माँ बाप को तनाव है । मेरे विषय में कोई बच्चा असफल न हो जाए ये हर शिक्षक को तनाव है । शिक्षा पूरी करनी के बाद कैरियर का मसला ये हर युवा का तनाव है । असल बात यह है कि तनाव हमारे जीवन में घुन की तरह लग चुका है । 



इससे मुक्त होकर स्वस्थ और आनंदित जीवन तभी जीया जा सकता है जब हम तनाव के मूल कारण को समझकर उसके निवारण का उपाय करें । सकारात्मक रहें , आशावान रहें मिलजुलकर रहें । एक दूसरे की खुशियाँ साझा करें । अच्छा साहित्य पढें और अच्छा संगीत सुनें । 

                                                मन मस्त हुआ फिर क्या बोले । 



 यही तो आजमाया हमने आज बच्चों के साथ । और आज ही क्यों हम तो सप्ताह भर से इसी अभियान को पूरे जोर-शौर से मंजिल तक पहुँचाने में लगे हुए हैं । बेशक हँसने का अभिनय करें लेकिन हँसी को पैर पसारने दें । हँसी को विस्तार दें ।


 

कभी एकांकी में इस समस्या को समाधान की ओर ले जाते हुए , कभी संगीत की तान पर नाचते और गुनगुनाते हुए , कभी मनोवैज्ञानिक बनकर बच्चों की हर प्रकार की समस्याओं पर परामर्श देते हुए पूरे विद्यालय को तनावमुक्त और आनंदयुक्त करने में लगे हुए थे । 




बच्चे ऊर्जा का अथाह भंडार होते हैं । आवश्यकता है कि उनकी क्षमता को पहचाना जाए । जब हम बच्चों विभिन्न प्रकार की गतिविधियों में बच्चों को शामिल करते हैं तो प्रत्येक बच्चे का रूझान पता चलता है । कार्य करने पर बच्चे के अंदर छिपा हुआ कौशल बाहर आता है । कितने लेखक , वक्ता , वैज्ञानिक , गायक और चित्रकार प्रत्येक विद्यालय के परिसर में अपना हुनर छिपाए हुए हैं इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है । हमने उनको पहचाना और उन्हें मंच दिया । अंततः हर प्रकार की गतिविधि का संकलन करके  हमने उसका कोलाज बना दिया ।