शनिवार, 4 मार्च 2023

कैसे बनती है कविता ?

 


        कैसे बनती है कविता


वियोगी होगा पहला कवि आह से उपजा होगा धाम गान

निकल कर आंखों से चुपचाप बही होगी कविता अनजान

सुमित्रानंदन पंत


जब खाएगा बड़े-बड़े कौर , तब पाएगा दुनिया में ठौर । 



राम जी की चिरई ,रामजी का खेत 

खालो चिरई भर- भर पेट।

काले मेघा पानी दे, पानी दे गुड़धानी दे 


    कविता का जन्म वाचिक परंपरा के रूप में हुआ। कविता एक संवेदना है , राग-तत्त्व है और संपूर्ण सृष्टि से जुड़ने और उसे अपना बना लेने का बोध है । असल में कविता संवेदनशील तथा रागात्मक अनुभूतियों की अभिव्यक्ति है।


अब सवाल यह है कि क्या कविता सिखाई जा सकती है? 


 इस संबंध में दो मत हैं:


     पहला मत कहता है कि कविता लेखन सिखाया जा सकता है । पश्चिम में तो बाकायदा प्रशिक्षण दिया जाता है।


 जैसे चित्रकला ,नृत्य कला ,गायन कला  आदि सिखाई जा सकती है तो कविता लेखन क्यों नहीं ? 

दूसरा मत कहता है कि चित्रकला में रंग , कूची, कैनवस तो संगीत कला में ताल ,स्वर लय, वाद्य इत्यादि होते हैं जबकि कविता में किसी बाह्य  उपकरणों मदद नहीं ली जा सकती। कवि को उन्हीं शब्दों का प्रयोग करना पड़ता है जो शब्द अन्य विषयों जैसे इतिहास भूगोल इत्यादि में प्रयोग किए जाते हैं अनेक शब्दों को जोड़कर वह लय ताल में  पिरोता है ।


 लेकिन सवालों का सामना करते हैं तो बेशक कवि ना बन पाएँ, एक सहृदय और भावुक पाठक अवश्य बन सकते हैं।  संवेदनशील बन सकते हैं । 

एक अच्छी कविता आप को आमंत्रित करती है । आप से सवाल करती है ।  आप की स्मृतियों में बनी रहती है और आपको सोचने पर विवश कर करती है । 


कविता के उपकरण या घटक : 

1 शब्द

शब्दों से  मेल मेलजोल 

 प्ले विद वर्ड्स

जब तक आप बच्चों से अलग -अलग रहते हैं तब तक आपके मित्र नहीं बनते लेकिन जब आप खेल के मैदान में जाते हैं और वहां पर बच्चों के साथ खेलते हैं त्ब आपके दोस्त बन जाते हैं ।  ऐसे ही शब्दों के साथ खेलना पड़ता है।  शब्द का केवल एक ही अर्थ नहीं होता है । उसके पीछे सदियों पुराने  अनेक अर्थ  छिपे रहते हैं।  जैसे इंटरनेट पर सूचनाओं की विशाल दुनिया से आप का सामना होता है।   शब्दों के अर्थ तलाशने से आपकी  अनेक शब्दों से मुलाकात होती है । 

तुकबंदी का प्रयास रचनात्मकता को आकार देता है । 

खेल खेल में तुकबंदी  हम कितनी करते हैं , कविताएँ रच डालते हैं। 

 अक्कड़ - बक्कड़ बंबे बो

             अस्सी नब्बे पूरे सौ ।


अगर कहीं में तोता होता

 तोता होता तो क्या होता

 तोता होता ।                            रघुवीर सहाय 


वाह जी, वाह!

हमको बुद्द्धू ही निरा समझा है!

हम समझते ही नहीं जैसे कि

आपको बीमारी है -

आप घटते हैं तो घटते ही चले जाते हैं,

और बढ़ते हैं तो बस यानी कि

बढ़ते ही चले जाते हैं

दम नहीं लेते हैं जब तक बि  ल  कु  ल  ही

गोल ना हो जाएंँ,

बिल्कुल गोल।

                               यह मरज़ आपका अच्छा ही नहीं होने में….....                          शमशेर बहादुर सिंह 



2 संरचना या शैली या वाक्य विन्यास : 


                         शब्दों के अंदर  रिदम होती है  , लय होती है,  व्यवस्था होती है । 

शब्दों के खेल से शुरू हुई कविता के रचना की कहानी शब्दों की व्यवस्था तक जाती है ।

संरचना या वाक्य विन्यास बदल देने से अर्थ में भी बदलाव आ जाता है । 





चोट जब  पेशे पर पड़ती है

तो कहीं ना कहीं एक चोरकील

 दबी रह जाती है

 जो मौका पाकर उभरती है

और अँगुली में  गड़ती है 



अर्थात उचित मेहनताना ना मिलना और उपेक्षा का भाव। 


अब जब हम इसकी संरचना बदल देते हैं तब देखिए अर्थ भी कैसे  बदल जाता है: 



  पड़ती है पेशे पर चोट जब

   तो चोरकील कहीं न कहीं एक

रह जाती है  दबी 

उभरती है जो मौका पाकर

और गड़ती है अँगुली में


संरचना बदल देने से चोट पर अधिक बल आ गया है, पेशे की चोट पर कम ।  

कविता में शब्दों के पर्याय नहीं होते । शब्द चयन का विशेष महत्त्व होता है । 



3  बिंब

  बाहरी संवेदनाएं ही बिंब के रूप में बदल जाती हैं।  कुछ विशेष शब्दों को सुनकर अनायास ही हमारे मन में कुछ चित्र कौंध  जाते हैं  । यही स्मृति चित्र शब्दों के सहारे बिंब के रूप में बदल जाते हैं। 

हमारी पाँच ग्यानेंद्रियाँ ( स्पर्श-त्वचा  , स्वाद-जीभ  , घ्राण-नाक  , दृश्य - आँख और श्रवण- कान  ) के माध्यम से हम संसार के विभिन्न पदार्थों का अनुभव करते हैं । सुमित्रानंदन पंत ने भी कविता के लिए चित्र भाषा की आवश्यकता पर बल दिया है । 


      तट पर बगुलों -सी   वृद्धाएँ 

      विधवाएँ  जप ध्यान में मगन

    मंथर धारा में बहता

    जिनका अदृश्य गति अंतर रोदन


ऊपर की पंक्तियां पढ़कर बगुलों का आकार , उनकी  सफेदी,  विधवाओं का सफेद वस्त्रों में रहना सब एकाकार हो जाता है।


 कविता में  बिंबों का ज्यादा महत्व होता है  । दृश्य बिंब ज्यादा प्रभावित करते हैं। 


4  छंद :  यानी आंतरिक लय 


 छंद के द्वारा कविता को इस तरह से बंधनयुक्त किया जाता है कि वह बिखरने से बच जाती है और उसमें प्रवाहमयता आ जाती है । 

यति-गति , लघु-गुरु का विशेष महत्त्व होता है । 

यति अर्थात रुकना और गति , यति का विलोम है । 

कविता वाचन करते समय  जहाँ रुकना होता है वह यति और जहाँ बिना रुके वाचन करना होता है वहाँ पर गति होती है ।  इसी तरह से व्याकरण में जो हृस्व और दीर्घ होता है वही छंद में लघु - गुरु होता है। 


मुक्त छंद के लिए भी अर्थ की लय का निर्वाह आवश्यक है । भाषा का संगीत कवि को जानना चाहिए ।

जैसे धूमिल की कविता मोचीराम में ऊपर से देखने में छंद नहीं है अर्थ का प्रवाह मौजूद है । 

बाबूजी ! सच कहूँ - मेरी निगाह में 

न कोई छोटा है 

न कोई बड़ा है 

मेरे लिए हर आदमी एक जोड़ी जूता है 

जो मेरे सामने 

मरम्मत के लिए खड़ा है 


5  परिवेश और संदर्भ : 


कविता का सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व  परिवेश होता है। उसी के अनुरूप कविता के सारे घटक परिचालित होते हैं और भाषा, संरचना, बिंब, छंद आदि का चुनाव किया जाता है। कवि नागार्जुन ने  अपनी छोटी - सी कविता 'अकाल और उसके बाद'  में ग्रामीण परिवेश की शब्दावली और बिंबों का प्रयोग करके अकाल के गहरे प्रभाव का वर्णन किया है। यहाँ संदर्भ अकाल और उसके बाद का परिवर्तन है जैसे -

कई दिनों तक चूल्हा : रोया, चक्की रही उदास। 

कई दिनों तक कानी-कुतिया सोई उनके पास ॥

कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त।

कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त ॥ 

यहाँ  चूल्हा, चक्की, भीत, दानें आदि गाँ का परिवेश दिखाते हैं ।िनमें से किसी भी शब्द की जगह उसका पर्याय रखने पर अर्थ बदल जाएगा ।  इससे यह सिद्ध होता है कि परिवेश की जीवंतता के लिए सही शब्दों का प्रयोग होना चाहिए। उसी के अनुरूप भाषा, छंद, लय आदि होने चाहिए। 

6 भाव-तत्त्व : 

भाव संपदा: कवि की वैयक्तिक सोच ,  दृष्टि और दुनिया को देखने का नजरिया कविता की भाव संपदा बनती है । कवि के  वैयक्तिकता मैं ही सामाजिकता हवा में सुगंध की तरह निवास करती है। प्रतिभा इन्हीं तत्त्वों को उजागर करने वाली आंतरिक क्षमता है । इसी भाव तत्त्व को रस का नाम दिया गया है । कविता पढने से हम द्रवित हो जाते हैं , हँसते हैं , चकित हो जाते हैं । ये ही तो कविता के रस भी कहे जाते हैं । 

संक्षेप में हम कह सकते हैं कि उपयुक्त शब्द चयन लय, तुक, वाक्य संरचना, बिंब विधान, छंद विधान तथा कम-से-कम शब्दों का प्रयोग ही कविता के प्रमुख घटक हैं।




कविता की रचना कैसे करें :


कविता संबंधी बुनियादी जानकारी 

कवि के पास विभिन्न वस्तुओं को देखने और पहचानने की नवीन दृष्टि 

विषय वस्तु को प्रस्तुत करने की कला का ज्ञान

 प्रत्येक आदमी के पास  प्रतिभा किसी-न-किसी रूप में अवश्य होती है। प्रतिभा उत्पन्न नहीं की जा सकती। फिर भी निरंतर अभ्यास और शास्त्र ज्ञान द्वारा इसे हम विकसित अवश्य कर सकते हैं। शब्द चयन का विशेष ध्यान रखना पड़ता है। शब्द चयन भावात्मक होने के साथ-साथ लयात्मक होना चाहिए। शब्द ज्ञान से ही भाषा पर हमारी पकड़ मजबूत होती है। इन विशेषताओं द्वारा भले ही हम कविता की रचना न कर सकें परंतु कविता की रचना करने का प्रयास अवश्य कर सकते हैं। यही नहीं, ऐसा करने से हम कविता का रसास्वादन कर सकते हैं और उसकी सराहना भी कर सकते हैं।


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